हिंदू धर्म में संध्या आरती को अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माना गया है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति आभार और दिनभर की साधना की समाप्ति का प्रतीक भी है। जैसे ही सूर्य अस्त होता है, मंदिरों में शंख, घंटियों और मंत्रों की ध्वनि से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है।
मंदिर में आरती के दौरान घर में पूजा वर्जित क्यों?
परंपरा के पीछे छिपे हैं आध्यात्मिक और ऊर्जा विज्ञान के गहरे रहस्य
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, जब मंदिरों में संध्या आरती हो रही हो, तब घर पर पूजा या आरती नहीं करनी चाहिए। इसके पीछे यह विश्वास है कि इस समय मंदिरों में की जाने वाली आरती से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पूरे क्षेत्र में फैलती है और उस ऊर्जा का केन्द्र मंदिर बन जाता है।
यदि कोई व्यक्ति उसी समय अपने घर में पूजा करता है, तो वह इस ऊर्जा के प्रवाह से स्वतः कट जाता है। परिणामस्वरूप उसकी साधना उतनी प्रभावशाली नहीं रह जाती।
ब्रह्मांडीय ऊर्जा और संध्या काल का रहस्य
आरती का समय होता है ऊर्जा संतुलन का विशेष क्षण
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, संध्या का समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संतुलन का क्षण होता है। इस समय वातावरण में ‘शुभ वायु’ प्रवाहित होती है, जो ध्यान और भक्ति के लिए अत्यधिक अनुकूल मानी जाती है।
मंदिर की आरती में भाग लेने वाले लोग इस ऊर्जा का सीधा लाभ उठाते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति उस समय घर में अकेले पूजा में व्यस्त रहता है, तो वह इस दिव्य ऊर्जा से वंचित रह जाता है।
Jyeshth Maah 2024: दान, पुण्य और व्रत-पर्वों का पावन महीना, जानिए प्रमुख तिथियां और महत्व…
मंदिर की आरती से जुड़ने की सलाह
भक्ति का पूर्ण फल प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग
धार्मिक जानकारों और संतों की सलाह है कि संध्या आरती के समय अपने मन और चेतना को मंदिर की आरती से जोड़ना चाहिए — चाहे वह मंदिर में जाकर हो या घर पर मंदिर की आरती लाइव देखकर। इससे साधक को पूर्ण आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है और उसकी भक्ति ऊर्जा से भर जाती है।