फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट ने ठहराया सही, आरोप साबित नहीं कर पाए पति
बिलासपुर। राजनांदगांव के रहने वाले एक रेलवे ट्रैकमैन को अपनी पत्नी से तलाक पाने की कोशिश में हाईकोर्ट से भी निराशा हाथ लगी। पत्नी पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता के गंभीर आरोप लगाने के बावजूद कोई ठोस प्रमाण पेश न कर पाने के कारण, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
फैमिली कोर्ट ने पहले ही याचिका खारिज कर दी थी, हाईकोर्ट ने भी ठहराया जायज़
पति ने साल 2020 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-d) के तहत तलाक की मांग की थी। लेकिन फैमिली कोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए विवाह के कम से कम दो वर्ष पूरे होने चाहिए, जो इस मामले में नहीं हुए थे। इसके अलावा आरोप भी प्रमाणित नहीं थे।
पति का दावा – पत्नी घरजमाई बनाकर रखना चाहती थी, आत्महत्या की देती थी धमकी
रेलवे कर्मचारी पति का आरोप था कि पत्नी उसे मायके में घरजमाई बनकर रखने का दबाव बनाती थी, और मना करने पर झगड़ा, आत्महत्या की धमकी, झूठे केस की धमकी देती थी। साथ ही उसने तीन बार गर्भपात भी किया।
पत्नी का पलटवार – पति करता था मारपीट, दहेज मांगता था, शराब पीकर करता था अमानवीय व्यवहार
पत्नी ने सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए पति पर दहेज उत्पीड़न, शारीरिक हिंसा, और अप्राकृतिक संबंध बनाने की जबरदस्ती जैसे गंभीर आरोप लगाए। उसने यह भी बताया कि गर्भावस्था में भी उसके साथ क्रूरता हुई, जिससे नवजात की मौत हो गई।
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कोर्ट ने कहा – परित्याग का आधार भी नहीं बनता, याचिका समय-सीमा से पहले दायर
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी ने 21 दिसंबर 2018 को घर छोड़ा और पति ने 17 नवंबर 2020 को याचिका दी। यह दो साल की कानूनी समय-सीमा से पहले था, इसलिए परित्याग का आधार भी स्वीकार्य नहीं।