आरबीआई फरवरी 2025 में ब्याज दरों में 0.25% की कटौती कर सकता है: इस बैंक का अनुमान…

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आरबीआई फरवरी 2025 में ब्याज दरों में 0.25% की कटौती कर सकता है: इस बैंक का अनुमान...

आरबीआई ब्याज दरों में कटौती का संकेत

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) फरवरी 2025 की अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत ब्याज दरों में 0.25% की कटौती कर सकता है। जर्मन ब्रोकरेज डॉयशे बैंक के विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिए महत्वपूर्ण होगा। उनके मुताबिक, लंबे समय से ब्याज दरों में कटौती का इंतजार अब खत्म हो सकता है।

ब्याज दर में कटौती से क्या होगा असर?

डॉयशे बैंक के विश्लेषकों ने बताया कि यदि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती में देरी करता है, तो इससे विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। उनका कहना है कि यदि आरबीआई जल्द कार्रवाई करता है तो इसका आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ब्रोकरेज ने यह भी कहा कि यदि ब्याज दरों में कटौती में देरी होती है, तो आरबीआई पिछड़ सकता है।

रिपो दर 6% तक गिर सकती है

डॉयशे बैंक के मुताबिक, आरबीआई फरवरी और अप्रैल 2025 की मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में 0.25% की कटौती करेगा, जिसके बाद H1 2025 तक रिपो दर 6% तक गिर सकती है। बैंक का मानना है कि भारत में मौद्रिक नीति का प्रभाव कम से कम तीन तिमाहियों के अंतराल के साथ दिखता है, इसलिए फरवरी से कटौती शुरू करना आरबीआई के लिए सही कदम होगा।

पिछले 11 समीक्षाओं में दरों में कोई बदलाव नहीं

आरबीआई ने पिछले दो वर्षों में अपनी नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था, जबकि विकास कई तिमाहियों के निचले स्तर पर रहा है। अब फरवरी 2025 में आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में होने वाली यह पहली दर समीक्षा महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पिछले 11 महीने में दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ, जो आरबीआई के दर वृद्धि चक्र का अंत और दर कटौती चक्र की शुरुआत का संकेत है।

महंगाई के आंकड़े और भविष्यवाणी

डॉयशे बैंक ने भारत की दिसंबर 2024 की सीपीआई मुद्रास्फीति के बारे में भी अपनी भविष्यवाणी साझा की। रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2024 में 5.48% से घटकर दिसंबर में 5.22% रही। डॉयशे बैंक का अनुमान है कि जनवरी से जून 2025 तक सीपीआई मुद्रास्फीति औसतन 4.3% रहेगी, जो आरबीआई के पूर्वानुमान 4.9% से कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि सर्दियों में नई फसलों के आने से सब्जियों की कीमतों में भारी गिरावट आएगी, जिससे मुद्रास्फीति पर दबाव कम होगा।

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