नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में सरकारी कर्मचारियों को बड़ा झटका देते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आने वाले मामलों में FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry) कराना अनिवार्य नहीं है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की मांग करना कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
सरकारी कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका!
यह फैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है, जो भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में प्रारंभिक जांच का बहाना बनाकर कार्रवाई से बचने की कोशिश करते थे या अदालतों में इसे चुनौती देते थे। अब भ्रष्टाचार के मामलों में सीधे एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जा सकेगी।
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने अपने फैसले में कहा:
🔹 भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।
🔹 कुछ मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय हो सकती है, लेकिन यह आरोपी का कानूनी अधिकार नहीं है।
🔹 FIR दर्ज करने से पहले जांच एजेंसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी सेवक द्वारा किया गया अपराध संज्ञेय है या नहीं।
🔹 प्रारंभिक जांच का उद्देश्य केवल यह पता लगाना है कि क्या कोई संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं।
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अब बचना होगा मुश्किल!
इस फैसले के बाद अब सरकारी कर्मचारियों के लिए भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में बचना और मुश्किल हो जाएगा। जांच एजेंसियां सीधे FIR दर्ज कर सकती हैं, जिससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।