जीवन बीमा पॉलिसी क्लेम विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्या कहा शीर्ष अदालत ने….

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जीवन बीमा पॉलिसी से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बीमा एक वैध और पारदर्शी अनुबंध है, इसलिए बीमा लेने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह सभी आवश्यक जानकारियों का सही तरीके से खुलासा करे। यदि बीमित व्यक्ति पूर्ववर्ती पॉलिसियों की जानकारी नहीं देता है, तो बीमा कंपनी उसके दावे को अस्वीकार कर सकती है। हालांकि, अदालत ने इस मामले में बीमाधारक के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी को 9% वार्षिक ब्याज के साथ पॉलिसी की राशि चुकाने का निर्देश दिया है।

बीमा अनुबंध में पारदर्शिता आवश्यक: सुप्रीम कोर्ट

इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने की। कोर्ट ने कहा,
“बीमा एक कानूनी अनुबंध है, इसलिए आवेदक का यह कर्तव्य है कि वह पॉलिसी लेते समय सभी तथ्यों का खुलासा करे, जो बीमा कंपनी के निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं। अगर कोई महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई जाती है, तो बीमा कंपनी दावे को खारिज कर सकती है।”

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी जानकारी की महत्वपूर्णता केस-टू-केस आधार पर तय की जानी चाहिए।

क्या था पूरा मामला?

रिपोर्ट के अनुसार, अपीलकर्ता महावीर शर्मा के पिता रामकरण शर्मा ने 9 जून 2014 को एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस से 25 लाख रुपये की जीवन बीमा पॉलिसी ली थी। 19 अगस्त 2015 को उनकी दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसके बाद, महावीर शर्मा ने बीमा राशि के लिए क्लेम किया, लेकिन बीमा कंपनी ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि बीमाधारक ने अपनी अन्य पॉलिसियों की जानकारी छुपाई थी

बीमा कंपनी के अनुसार, मृतक ने केवल अवीवा लाइफ इंश्योरेंस की एक पॉलिसी का खुलासा किया था, जबकि अन्य जीवन बीमा पॉलिसियों की जानकारी नहीं दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी के तर्क को किया खारिज

बीमा कंपनी के इस फैसले के खिलाफ महावीर शर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां कोर्ट ने पाया कि बीमाधारक द्वारा छुपाई गई पॉलिसियां कुल 2.3 लाख रुपये की थीं, जबकि क्लेम की गई पॉलिसी 40 लाख रुपये की थी।

कोर्ट ने कहा कि भले ही बीमा कंपनी को संदेह हो, लेकिन जिस जानकारी को छुपाने की बात की जा रही है, वह इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी कि इससे पॉलिसी रद्द की जाए।

बीमा क्लेम नकारना अनुचित: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु प्राकृतिक कारणों या दुर्घटना से होती है और पॉलिसी के तहत उसे कवर किया गया है, तो बीमा कंपनी को क्लेम देने से इंकार नहीं करना चाहिए।

कोर्ट ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह मृतक के परिजनों को 9% वार्षिक ब्याज के साथ बीमा राशि का भुगतान करे।

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बीमा पॉलिसी धारकों के लिए क्या सबक?

  • बीमा लेते समय सभी पॉलिसियों का सही विवरण दें
  • किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाने से बचें, क्योंकि इससे भविष्य में क्लेम रिजेक्ट हो सकता है।
  • यदि बीमा कंपनी अनुचित तरीके से आपका क्लेम खारिज करती है, तो आप उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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