सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई महिला लंबे समय तक अपने साथी के साथ लिव-इन में रही है, तो वह उस पर शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप नहीं लगा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में यह साबित करना मुश्किल होता है कि शारीरिक संबंध केवल शादी के वादे के आधार पर ही बनाए गए थे।
🔹 16 सालों तक चला रिश्ता, फिर रेप का आरोप
इस मामले में शिकायतकर्ता महिला एक लेक्चरर हैं, जिन्होंने एक बैंक अधिकारी पर शादी का वादा करके 16 वर्षों तक संबंध रखने का आरोप लगाया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता) ने इस तर्क को खारिज कर दिया और आरोपी को राहत दी।
🔹 लंबे समय तक लिव-इन रहने से रेप का दावा कमजोर पड़ता है
कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष शिक्षित थे और उनका रिश्ता आपसी सहमति से बना था। वे एक-दूसरे के घर आते-जाते थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका रिश्ता किसी जबरदस्ती या धोखाधड़ी पर आधारित नहीं था।
🔹 सुप्रीम कोर्ट का तर्क: सहमति से बना रिश्ता, नहीं बनता अपराध
न्यायालय ने कहा कि 16 साल तक चले संबंध के बाद यह कहना मुश्किल है कि महिला ने किसी दबाव में यह संबंध बनाए थे। यदि शादी का वादा किया भी गया था, तो इतने लंबे समय तक रिश्ते में रहने से आरोपों की गंभीरता कम हो जाती है।
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📌 क्या कहता है कानून?
भारतीय कानून के तहत, यदि कोई व्यक्ति शादी का झूठा वादा करके महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है और बाद में शादी से इनकार करता है, तो इसे रेप का मामला माना जा सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि यदि रिश्ता इतने लंबे समय तक आपसी सहमति से चला है, तो इसे धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता।