छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी को राहत, ITAT का आदेश खारिज
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आयकर जुर्माने से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ किया है कि अगर कोई करदाता स्वयं अपनी गलती स्वीकार करता है और उसका कोई धोखाधड़ी या छिपाव का इरादा नहीं होता, तो उसे आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 271(1)(सी) के तहत दंडित नहीं किया जा सकता।
मामला क्या था?
यह प्रकरण छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड से जुड़ा है। कंपनी ने अपने कर विवरण में एक गणना त्रुटि को स्वेच्छा से उजागर किया था।
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बहीखाता लाभ (Book Profit) में ₹35.74 करोड़ के बजाय ₹26.89 करोड़ की जानकारी दर्ज की गई थी।
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यह अंतर डेटा फीडिंग की मानवीय गलती के कारण हुआ था।
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कर निर्धारण अधिकारी (AO) ने इसे जानबूझकर किया गया गलत विवरण मानते हुए धारा 271(1)(C) के तहत जुर्माना लगाया।
न्यायिक प्रक्रिया का क्रम
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कंपनी ने AO के जुर्माने के खिलाफ CIT (अपील) के समक्ष याचिका दाखिल की।
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CIT (A) ने इसे मानवीय त्रुटि मानते हुए जुर्माना हटाया।
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राजस्व विभाग ने ITAT में अपील की, जिसने जुर्माना फिर से लागू किया।
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कंपनी ने ITAT के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
हाईकोर्ट का फैसला क्या कहता है?
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जब करदाता स्वेच्छा से त्रुटि स्वीकार करता है
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और उसका इरादा धोखाधड़ी या कर चोरी का नहीं होता
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तब उस पर दंडात्मक कार्रवाई उचित नहीं मानी जाएगी।
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हाईकोर्ट ने ITAT के आदेश को खारिज कर दिया और कंपनी को जुर्माने से राहत दी।
इस फैसले का महत्त्व
यह निर्णय उन सभी करदाताओं के लिए राहत भरा है जो जानबूझकर गलती नहीं करते, बल्कि मानवीय भूलों को समय रहते सुधार लेते हैं। यह कर प्रणाली में पारदर्शिता और न्याय की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।