31 साल पुराने केस में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बंटवारे के बाद मिली संपत्ति को पिता अपनी मर्जी से बेच सकते हैं, और बच्चों को उसमें रोकने का कोई हक नहीं है। यह फैसला हजारों पारिवारिक विवादों में मिसाल बनेगा।
मामला क्या था? 1994 में शुरू हुआ था कानूनी संघर्ष
बेंगलुरु के पास की पैतृक जमीन को लेकर विवाद 1994 में शुरू हुआ।
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पिता ने संपत्ति का हिस्सा 1993 में बेच दिया।
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चार बेटों ने दावा किया कि यह संपत्ति पैतृक थी और उन्हें बिना सहमति बेचना गलत है।
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पिता ने कहा – उन्होंने यह जमीन अपने भाई से खरीदी थी, यह उनकी निजी संपत्ति है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
22 अप्रैल 2025 को दिए गए फैसले में कोर्ट ने निम्न बातें स्पष्ट कीं:
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1986 में रजिस्टर्ड बंटवारा हो चुका था।
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पिता ने 1989 में अपने हिस्से की जमीन अपने भाई से खरीदी।
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1993 में जमीन बेचना उनका निजी अधिकार था।
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अगर संपत्ति बंटवारे में मिल चुकी हो, तो वह पैतृक नहीं, निजी संपत्ति मानी जाती है।
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ऐसी संपत्ति को व्यक्ति अपनी मर्जी से बेच, गिफ्ट या वसीयत कर सकता है।
बच्चों की याचिका क्यों खारिज हुई?
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जमीन बंटवारे के बाद खरीदी गई थी, इसलिए यह संयुक्त नहीं बल्कि निजी संपत्ति थी।
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पिता ने यह जमीन लोन लेकर खरीदी थी, पारिवारिक फंड से नहीं।
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कोई प्रमाण नहीं था कि उन्होंने इस संपत्ति को दोबारा संयुक्त परिवार में शामिल किया हो।
क्यों अहम है यह फैसला?
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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बंटवारे के बाद मिली संपत्ति पर दूसरों का कोई हक नहीं होता।
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यह फैसला हिंदू संयुक्त परिवार (HUF) से जुड़े संपत्ति विवादों में कानूनी स्पष्टता लाता है।
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भविष्य में ऐसे हजारों मामलों को रोकने में मदद मिल सकती है।
असर क्या होगा?
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पारिवारिक संपत्ति विवाद कम होंगे।
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संपत्ति के स्वतंत्र स्वामित्व और उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश मिले हैं।
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जो लोग पैतृक संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार का दावा करते हैं, उन्हें अब कानून का दायरा समझने में आसानी होगी।