जशपुर (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक जनपद जशपुर से आने वाले अतुल मूंदड़ा आज एक ऐसे नाम बन चुके हैं, जो संघर्ष, सेवा और सांस्कृतिक समर्पण की त्रयी को जीवंत करते हैं। 2 जून 1983 को जन्मे अतुल जी का जीवन अपने आप में एक प्रेरणादायक गाथा है — जहां विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि तराशा।
संघर्षों से सजी सफलता की कहानी
अतुल मूंदड़ा का बचपन और युवावस्था अनेक कठिनाइयों से घिरी रही। लेकिन उन्होंने हर बाधा को अवसर में बदला। उनका मानना है कि “जहां संघर्ष है, वहां ही संकल्प की मशाल जलती है।”
जशपुर जैसे छोटे शहर से निकलकर उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से पूरे समाज में एक नई ऊर्जा और दिशा का संचार किया।
संस्कृति को दिया नया जीवन
अतुल जी ने ‘आकार कला साहित्य (AKS)’ नामक संस्था की स्थापना की, जिसका उद्देश्य नवोदित कलाकारों और साहित्य प्रेमियों को मंच देना है। उनकी पहल पर जशपुर में गरबा जैसे पारंपरिक आयोजनों की शुरुआत हुई, जिसने न केवल धार्मिक आस्था को सशक्त किया, बल्कि स्थानीय संस्कृति को नई पहचान दी। आज यह संस्था युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।
समाज में संवाद का सेतु
अतुल मूंदड़ा को उनके सौम्य, स्नेहिल और संवादशील व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है। वे समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने वाले पुल हैं, जहां हर व्यक्ति को अपनापन और हर रिश्ते को सम्मान मिलता है। उनका व्यवहार समाज में प्रेम, सहयोग और नैतिक मूल्यों की अलख जगाता है।
व्यवसाय, धर्म और साहित्य में रुचि
एक सफल व्यवसायी के रूप में अतुल जी ने सदैव नैतिक मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता दी है।
धार्मिक आस्था, साहित्यिक अभिरुचि और पर्यटन के प्रति उनका उत्साह उन्हें एक समग्र व्यक्तित्व प्रदान करता है।
हर मंदिर में उनकी श्रद्धा झलकती है, हर पुस्तक में उनकी जिज्ञासा और हर यात्रा में उनका आत्मिक उत्साह।
एक प्रेरक व्यक्तित्व
अतुल मूंदड़ा का जीवन संदेश देता है कि सीमित संसाधनों में भी असीम संभावनाएं छुपी होती हैं।
संकल्प, साधना और संस्कृति को जीवन का आधार बनाकर कोई भी व्यक्ति समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
2 जून के अवसर पर उनके जन्मदिवस पर शुभचिंतकों, समाजसेवियों, साहित्यकारों और युवाओं ने उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कीं और उनके योगदान को नमन किया।