Bodhghat Project: 49 हजार करोड़ की योजना से बदलेगा छत्तीसगढ़ का भविष्य, सिंचाई और बिजली दोनों की मिलेगी सौगात…

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Bodhghat Project: 49 हजार करोड़ की योजना से बदलेगा छत्तीसगढ़ का भविष्य, सिंचाई और बिजली दोनों की मिलेगी सौगात...

Bodhghat Project: रायपुर। छत्तीसगढ़ की वर्षों पुरानी महत्वाकांक्षी योजना बोधघाट बहुउद्देश्यीय परियोजना को अंततः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हरी झंडी मिल गई है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दिल्ली में पीएम से मुलाकात की, जहां परियोजना को मंजूरी देने के साथ केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के समक्ष विस्तृत प्रस्तुति की सलाह भी दी गई है।

सिंचाई और बिजली दोनों की मिलेगी सौगात

इस 49,000 करोड़ रुपये की परियोजना से न केवल बिजली उत्पादन (125 मेगावॉट हाइड्रो पावर) होगा, बल्कि दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, राजनांदगांव, कवर्धा और मुंगेली जिलों तक सिंचाई सुविधा पहुंचेगी। कुल मिलाकर लगभग 7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सींचने की क्षमता विकसित होगी।

कोरबा के बाद अब बस्तर बनेगा पावर हब

बोधघाट परियोजना का मॉडल कोरबा के बांगो डैम जैसा होगा, जहां सिंचाई के साथ-साथ बिजली उत्पादन भी किया जाएगा। यह छत्तीसगढ़ को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

इंद्रावती नदी पर बनेगा विशाल डैम, कई गांव होंगे लाभान्वित

परियोजना बस्तर की इंद्रावती नदी पर आधारित है और इससे 359 गांवों को सिंचाई सुविधा मिलेगी — दंतेवाड़ा के 151, सुकमा के 90 और बीजापुर के 218 गांव शामिल हैं।

सिंचाई रकबे में होगी बड़ी वृद्धि

सर्वे के अनुसार, इस परियोजना के पूरा होने पर:

  • दंतेवाड़ा में सिंचाई रकबा बढ़कर 65.73% होगा

  • सुकमा में 60.59%

  • बीजापुर में 68.72%

13,783 हेक्टेयर भूमि की होगी आवश्यकता

इस परियोजना के लिए:

  • 5704 हेक्टेयर वनभूमि

  • 5010 हेक्टेयर निजी भूमि

  • 3068 हेक्टेयर सरकारी भूमि
    की आवश्यकता होगी। करीब 2 दर्जन गांव पूरी तरह और 14 गांव आंशिक रूप से डूब में आएंगे। 2000 से अधिक परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा।

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मत्स्य उत्पादन में भी होगी वृद्धि

मुख्यमंत्री के अनुसार, बोधघाट और रिवर लिंकिंग परियोजना से न केवल कृषि को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि 4 लाख टन तक मछली उत्पादन भी संभव होगा, जिससे रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।

यह क्यों है महत्वपूर्ण?

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक और कृषि उन्नति के लिए यह परियोजना “लाइफलाइन” साबित हो सकती है। नक्सल प्रभावित इलाकों में यह विकास की नई रोशनी लेकर आएगी।

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