रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कलेक्टर द्वारा जारी एक नए आदेश ने जमीन रजिस्ट्री प्रक्रिया में बड़ा बदलाव कर दिया है। अब जमीन की रजिस्ट्री से पहले संबंधित पटवारी से नक्शा सहित प्रतिवेदन लेना अनिवार्य कर दिया गया है। यह आदेश पंजीयन मंत्री के निर्देशों का हवाला देते हुए जारी किया गया है।
डिजिटलाइजेशन के युग में ऑफलाइन प्रक्रिया पर ज़ोर
जब पूरे प्रदेश में भुइंयां प्रणाली के तहत डिजिटल खसरा, नक्शा और बटांकन ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है, तो बस्तर में अब मैनुअल प्रतिवेदन की मांग ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानकारों का कहना है कि यह निर्णय डिजिटलाइजेशन की दिशा में एक कदम पीछे है। इससे न केवल आम लोगों की परेशानी बढ़ेगी, बल्कि पटवारियों के भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल सकता है।
आम जनता के लिए नए संकट, पटवारियों के चक्कर लगाना होगा जरूरी
अब तक रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया शुरू होती थी, जिससे राजस्व विभाग में पेपर की स्थिति ट्रैक की जा सकती थी। मगर नए आदेश के तहत रजिस्ट्री से पहले पटवारी से प्रतिवेदन लेना होगा, जिससे:
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प्रक्रिया लंबी और जटिल हो जाएगी
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पटवारी की मनमानी बढ़ सकती है
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भ्रष्टाचार की संभावना अधिक होगी
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आम नागरिकों को अनावश्यक दौड़भाग करनी होगी
2011 में आई थी भुइंयां प्रणाली, फिर ऑफलाइन की जरूरत क्यों?
भुइंयां प्रणाली के तहत राज्य सरकार ने सभी राजस्व अभिलेखों को ऑनलाइन करने का दावा किया था। सवाल ये है कि जब सारी जानकारी डिजिटल है तो पटवारी से ऑफलाइन प्रतिवेदन लेने की जरूरत क्यों पड़ी?
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क्या ऑनलाइन रिकॉर्ड में कोई जानकारी छुपाई गई है?
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क्या अपडेट नहीं करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई हुई?
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क्या सरकार की पारदर्शी प्रणाली की मंशा को पीछे धकेला जा रहा है?
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विरोध और सवालों की बौछार
यह आदेश न केवल आम जनता के हितों पर असर डालेगा, बल्कि राज्य और केंद्र सरकार की पारदर्शी और डिजिटल प्रशासन की नीति के विरुद्ध जाता है। कलेक्टर के इस फैसले को लेकर प्रशासनिक हलकों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।