रायपुर। प्रदेश में शिक्षा के अधिकार को लेकर जहां एक ओर सरकार नई शिक्षा नीति 2020 के तहत निजी और सरकारी स्कूलों में समानता लाने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों की मनमानी लगातार बढ़ती जा रही है। अभिभावकों पर महंगी किताबें, ब्रांडेड स्टेशनरी, यूनिफॉर्म और मनमानी फीस का दबाव डाला जा रहा है।
डोनेशन और एडमिशन फीस के नाम पर मोटी रकम की वसूली, निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने का दबाव, और ट्रांसफर सर्टिफिकेट के लिए भी पैसे वसूलने जैसी घटनाएं आम हो गई हैं।
क्या है मामला? निजी स्कूलों की लूट की पूरी कहानी
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निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें थोपकर बच्चों और अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है।
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स्कूल प्रबंधन को इन प्रकाशकों से भारी कमीशन मिलता है, इसलिए वे एनसीईआरटी या एससीईआरटी की किताबें लागू नहीं करते।
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जूते, मोजे, बैग, स्टेशनरी तक स्कूल द्वारा तय दुकानों से ही लेने का दबाव बनाया जाता है।
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बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, यदि अभिभावक महंगे विकल्प को मना कर दें।
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बाउंसर तक तैनात कर दिए गए हैं ताकि पालक विरोध न करें।
सरकार का आदेश, लेकिन पालन नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्पष्ट आदेश दिया है कि सभी निजी स्कूलों में केवल एनसीईआरटी और एससीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएं, लेकिन स्कूल प्रबंधन इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। कई स्कूलों में तो शासकीय मान्यता की आड़ में ब्रांच खोलकर मनमाने ढंग से परीक्षा और फीस वसूली का खेल चल रहा है।
शिकायतें क्या कहती हैं?
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पिछले 5 सालों में 30% से 50% तक फीस में वृद्धि।
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डोनेशन और सीट के नाम पर डराकर वसूली।
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ट्रांसफर सर्टिफिकेट (TC) तक के लिए वसूला जा रहा है शुल्क।
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शिक्षा का खुला व्यवसायीकरण, स्कूल कम और दुकान ज्यादा लगते हैं।
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सरकार के निर्देशों की खुलेआम अनदेखी।