बालोद जिला न्यायालय में भृत्य की नौकरी से हटाए जाने का मामला
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला न्यायालय में कार्यरत एक भृत्य राजेश देशमुख को शादी के लिए 7 दिन की छुट्टी लेना भारी पड़ गया। वह 10 दिन बाद लौटा, जिसे अनाधिकृत अवकाश मानते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
हाईकोर्ट में 9 साल तक चला संघर्ष
राजेश ने विभागीय कार्रवाई को अन्यायपूर्ण बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। लगभग 9 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और सेवा में पुनः बहाली के आदेश दिए।
शादी के कारण छुट्टी बढ़ने पर बर्खास्तगी, नोटिस का दिया था जवाब
वर्ष 2016 में शादी के दौरान छुट्टी लेकर गए राजेश देशमुख को अवकाश बढ़ जाने पर सेवा से हटा दिया गया। विभाग ने इसे अनुशासनहीनता बताया। जबकि राजेश ने इसका संतोषजनक उत्तर भी दिया था, लेकिन बिना जांच के उन्हें हटा दिया गया।
हाईकोर्ट ने कहा – बिना जांच के नहीं हटाया जा सकता कर्मचारी
जस्टिस संजय श्याम अग्रवाल की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रोबेशन पीरियड में होने के बावजूद किसी भी कर्मचारी को सुनवाई और जांच के बिना हटाना नियम विरुद्ध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुशासनात्मक प्रक्रिया का पालन होना आवश्यक था।
50% बकाया वेतन के साथ बहाली का आदेश
हाईकोर्ट ने बालोद जिला न्यायालय को निर्देश दिया कि राजेश देशमुख को 50 प्रतिशत पिछला वेतन देते हुए सेवा में तुरंत बहाल किया जाए। इस फैसले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और कर्मचारी अधिकारों की एक मिसाल पेश की है।