आज पूरा देश रंगों के त्योहार होली की खुशियों में डूबा हुआ है। होली न केवल उमंग और उत्साह का पर्व है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। बसंत ऋतु की मस्ती के साथ होली की धूम कई राज्यों में पहले से ही देखी जा रही है।
रंगों वाली होली की शुरुआत कैसे हुई?
होली के रंगों का संबंध भगवान कृष्ण और राधा से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि कृष्ण अपने गहरे रंग को लेकर चिंतित थे कि राधा और गोपियां उन्हें स्वीकार करेंगी या नहीं। इस पर माता यशोदा ने उन्हें सुझाव दिया कि वे राधा और उनकी सखियों पर रंग डाल सकते हैं। यही परंपरा बाद में रंगों वाली होली के रूप में प्रचलित हो गई। आज भी वृंदावन, मथुरा, बरसाना और नंदगांव में यह परंपरा धूमधाम से निभाई जाती है।
होली कैसे मनाई जाती है?
होली का त्योहार दो दिनों तक मनाया जाता है—
🔸 पहला दिन: होलिका दहन – इस दिन लकड़ियों और उपलों का ढेर जलाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
🔸 दूसरा दिन: रंगों की होली – इस दिन सभी लोग गुलाल, अबीर और रंग लगाकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाइयों का आनंद लेते हैं।
होली की पौराणिक कथा
होली का संबंध भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कहानी से भी जुड़ा है। अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। अंत में होलिका, जो कि आग में न जलने का वरदान प्राप्त थी, प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर राख हो गई।
होली खेलते समय आंखों में रंग चला जाए तो न घबराएं, अपनाएं ये आसान उपाय…
होली का महत्व
✔ धार्मिक रूप से: यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय दर्शाता है।
✔ सामाजिक रूप से: जाति-धर्म का भेद मिटाकर मेलजोल और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
✔ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से: रंगों का इस्तेमाल मानसिक तनाव कम करने और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने में सहायक होता है।
होली के रंगों में घुलें और खुशियां बांटें!
होली का सबसे सुंदर पहलू यही है कि इसमें जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता। लोग “बुरा न मानो, होली है” कहते हुए एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और पुराने गिले-शिकवे भूलकर इस पर्व का आनंद लेते हैं।