बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 15 सीआरपीएफ जवानों की हत्या के मामले में दोषी नक्सलियों की क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि साजिश अक्सर गुप्त रूप से रची जाती है, जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध कराना कठिन होता है। अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी साजिश को साबित कर सकता है।
हमले की पूरी घटना
यह मामला 11 मार्च 2014 का है, जब बस्तर के तकवाड़ा क्षेत्र में करीब 150 से 200 नक्सलियों ने एनएच-30 पर सीआरपीएफ जवानों पर घात लगाकर हमला किया था। इस हमले में आईईडी ब्लास्ट के कारण सीआरपीएफ की 80वीं बटालियन के 15 जवान शहीद हो गए, जबकि तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हुए। इस हमले में एक स्थानीय ग्रामीण की भी मौत हो गई थी।
ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट तक का सफर
हमले में शामिल कवासी जोग, महादेव नाग और अन्य आरोपियों के खिलाफ धारा 120बी (आपराधिक साजिश), धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें कठोर सजा सुनाई थी।
इसके खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील दायर की और तर्क दिया कि 150 से अधिक नक्सलियों द्वारा किए गए हमले का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं है। उन्होंने संदेह का लाभ देते हुए बरी किए जाने की मांग की।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल शामिल थे, ने मामले की सुनवाई की। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की वारदातें अक्सर जंगलों में होती हैं, जहां प्रत्यक्षदर्शियों की उपलब्धता मुश्किल होती है। इसलिए, अभियोजन पक्ष को आई-विटनेस (प्रत्यक्षदर्शी) की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि परिस्थिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी अपराध सिद्ध किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपियों की अपील खारिज कर दी।