छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की यह दिल दहला देने वाली घटना 29 जनवरी 2021 को सामने आई थी, जब एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की, उसके पिता और 4 साल की भतीजी को बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
हत्याएं उस वक्त हुईं जब पीड़ित परिवार, संतराम मंझवार के मवेशियों को चराने के काम से असंतुष्ट होकर अपने गांव लौट रहा था।
घटना की भयावहता
आरोपियों ने नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप किया और फिर उसके सिर पर पत्थर पटक कर उसकी हत्या कर दी।
जब उसके पिता ने इसका विरोध किया, तो उसकी भी डंडों और पत्थर से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।
चार साल की बच्ची को भी नहीं छोड़ा गया — उसकी भी निर्दयता से हत्या कर दी गई।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला: फांसी की सजा
कोरबा फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 6 आरोपियों में से 5 को IPC की धारा 302, 376(2), SC-ST और POCSO एक्ट के तहत दोषी ठहराया था।
इनमें शामिल थे:
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संतराम मंझवार (49)
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अब्दुल जब्बार (34)
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अनिल कुमार सारथी (24)
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परदेशी राम (39)
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आनंद राम पनिका (29)
उमाशंकर यादव (26) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
बिलासपुर हाई कोर्ट ने क्यों कम की सजा?
फैसले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई।
हाई कोर्ट ने माना कि घटना अत्यंत नृशंस और क्रूर है, लेकिन इसे दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि—
“रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं का सुधार और पुनर्वास असंभव है।”
इस आधार पर कोर्ट ने सभी दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
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“यह घटना समाज को झकझोर देने वाली है, लेकिन मृत्युदंड केवल दुर्लभतम मामलों में दिया जाना चाहिए।”
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“दोषियों की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं पाई गई है।”
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“न्याय का उद्देश्य सिर्फ सजा देना नहीं, सुधार की संभावना भी देखना है।”
मामले पर जनमानस की प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया और जनता में मिश्रित प्रतिक्रिया देखी जा रही है।
जहां कुछ लोग कोर्ट के सुधारवादी रुख को स्वीकार कर रहे हैं, वहीं कई लोग इतने जघन्य अपराध में मृत्युदंड हटाने को न्याय में कमी मान रहे हैं।