बिलासपुर: बिलासपुर उच्च न्यायालय ने कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी भी कर्मचारी को सजा देने का अधिकार केवल उस कर्मचारी के नियुक्तिकर्ता अधिकारी को ही है, न कि अन्य किसी अधिकारी को। इसके साथ ही, कलेक्टर बीजापुर द्वारा जारी निलंबन आदेश और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा जारी आरोप पत्र के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने क्या कहा?
बिलासपुर उच्च न्यायालय के जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि कर्मचारियों को सजा देने का अधिकार केवल उनके नियुक्तिकर्ता अधिकारी के पास होता है। कलेक्टर बीजापुर द्वारा कैलाश चंद्र रामटेक को निलंबित करने और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा आरोप पत्र जारी करने के मामले में यह आदेश दिया गया।
कैलाश चंद्र रामटेक का मामला
यह मामला कैलाश चंद्र रामटेक, जो कि एक शिक्षक एलबी हैं, से जुड़ा हुआ है। कैलाश चंद्र रामटेक पर आरोप था कि उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से पैसे के लेन-देन की शंका में एक ऑडियो वायरल किया। इसके बाद, कलेक्टर बीजापुर ने 15 सितंबर 2024 को उन्हें निलंबित कर दिया। इसके बाद, 20 सितंबर 2024 को आरोप पत्र भी जारी किया गया।
अधिवक्ता सिद्धीकी का तर्क
कैलाश चंद्र रामटेक के अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और नरेंद्र मेहेर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। अधिवक्ता सिद्धीकी ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता (कैलाश चंद्र रामटेक) का नियुक्तिकर्ता अधिकारी संयुक्त संचालक है, न कि कलेक्टर। उन्होंने कहा कि कलेक्टर को इस मामले में निलंबन आदेश देने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा, सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग के द्वारा आरोप पत्र जारी करने का भी अधिकार नहीं था।
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कोर्ट का आदेश और अगले कदम
कोर्ट ने कलेक्टर बीजापुर और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग को नोटिस जारी किया और उनसे जवाब पेश करने का निर्देश दिया। साथ ही, निलंबन आदेश और आरोप पत्र के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई है। अब इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए जवाब का इंतजार किया जा रहा है।